लिख रहा हूँ जीवन के,
कुछ अनकहे अनसुने सच,
मेरे दर्द से भरे ज्वालामुखी से,
कर रहा हूँ सच का प्रवाह।
काल चक्र के अनोखे रंग,
बचपन जवानी और बुढ़ापे रूप में जी रहे हम,
हर मोड़ पर हमें साथी मिले,
नाम हैं उसका सुख और दुःख।
जीवन कि धारावाहिक में,
हर एक प्रकरण का है अपना मोल,
यह तो अपने अपने समझने की बात है,
क्या सिख लेना हैं हमें अपने प्रकरण से।
बचपन
बचपन बीता सुख दुःख में,
ख़्वाब जवानी का दिल लिए,
जूझ रहा था अपने दर्द से,
फिर भी हौसला था जीने का मुझमें।
थोड़ा सा बड़ा हुआ जो मैं,
बीमारियाँ से हुई दोस्ती प्रगाढ़,
नसीब अच्छा था जो मेरा,
बिस्तर ने दिया साथ मुझे वर्ष भर।
कुछ बारह साल का हुआ होगा मैं,
क़िस्मत ने फिर एक बार करवट लिया,
किया शोषण कुछ अपनों ने,
शरीर को तो कष्ट दिया पर दुःख आत्मा को छलनी से हुआ।
जो थोड़ा बड़ा हुआ और,
पाँव परने वाले थे जवानी के दहलीज़,
तभी पक्षाघात ने किया प्रहार,
मेरे चेहरे को दिया विकार। (Bell’s Palsy)
जवानी
जवानी की शुरुआत हुई,
पक्षाघात का लिया विकार चेहरे पे,
जिस उम्र में अपनापन सबको मिले,
मुझे मिला सिर्फ़ सामाजिक तिरस्कार।
फिर भी हार ना माना मेरा दिल,
सोचा पढ़ लिख कर पा लूँगा मंज़िल,
सारे सम्बंध तोड़ कर मैंने,
जी तोड़ पढ़ाई के ऊपर मैंने मेहनत है की।
नौकरी मिला और मिला मुझे सुख समृद्धि,
शांति से जीने की ख़ुशी दिल से मैंने महसूस की,
पर थी ख़ुशी मेरी क्षणभंगुर सी,
कुछ समय ही सिर्फ़ मेरे पास रही।
मधुमेह और रक्तचाप ने चुपके से दस्तक दिया,
मेरे व्यस्त जीवन को अपना परिचय दिया,
हँसता खेलता जीवन थम सा गया,
दिमाग़ी पक्षाघात से मैं त्रस्त हुआ।
जीवन झूल रहा था मेरा,
जीवन और मृत्यु के बीच,
चाहत नहीं थी जीने की दिल में,
मृत्यु के स्वागत में मैंने खुद को लगा लिया।
पर शायद अनचाहा था मेरा नसीब,
ईश्वर को भी मैं नहीं था स्वीकार्य,
वापस लौट आया अपने जीवन को मैं,
क्योंकि शायद कष्टों भरा पल अभी और था मुझे जीना।
अचानक लगा नसीब थोड़ा चमका,
ईश्वर ने शायद मुझ पे की मेहरबानी,
एक दिन मुलाक़ात हुई मुझे मुझसे,
मुझे मेरी जीने की मक़सद मिल गयी।
प्यार जो कभी मिला ना था मुझे,
थोड़ा अपनापन का भी था मुझे इंतज़ार,
ईश्वर ने मिलाया मुझे उससे,
जैसे लगा मुझे मिल गया अपना प्यार।
सुनहरे ख़्वाब में जीने लगा,
खोजने लगा उसमें मेरा प्यार,
चाहत बेलगाम सा हो गया,
लगा जैसे मैंने पा लिया मेरे जीवन जीने का सार।
दिन बीते बीती ख़्वाब भरी मेरी रातें,
अहसास भरे समंदर में गोते खा रहा था मेरा दिल,
था दिल में अद्वितीय अहसास जीवन जीने की,
पर अचानक से लग गए मेरे अहसास पर लगाम।
ख़ुशी मुझे रास नहीं आयी,
उसे अपने पुरानी प्यार याद आयी,
छोड़ चली वो भी मुझे मँझधार,
जीवन को मेरे कर वीरान।
फिर भी हिम्मत हारा नहीं दिल,
खुद को चुप कर जी रहा ये जीवन मुश्किल,
शायद कुछ लोग होते है यहाँ,
जिन्हें नहीं मिलती है उनकी ख़ुशी।
आगे का जीवन जीना अभी बाक़ी हैं,
खुद को ढूँढना हैं मुझे अपनी सोच में,
पाना हैं मुझे वापस जीने की मक़सद,
और लिखना हैं मुझे अपने आगे के जीवन का सफ़र।
मेरी लेखनी का उद्देश्य एक,
तकलीफ़ों में ना खो अपना विवेक,
जीवन हैं एक निरंतर प्रवाह,
सुख को तुम गले लगा और दुःख से ना कभी घबरा।
कुणाल कुमार
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Tried to summarize important life events in simpler poetic manner.