क्या मेरे पास आना,
आकर यूँ फिर चले जाना,
ये आपकी सोच थीं,
या थी कोई महबूरी इस समाज की?
क्यों मेरा प्यार,
नहीं समझ पाया अपने कभी,
क्या मेरे प्यार में थी कोई कमी,
या नहीं समझ पाया मैंने आपको कभी?
क्या आपने मुझसे कभी प्यार की?
या थी ये मेरे समझ की कमी,
सोचा था आप है मेरी,
पर आपको कहाँ है समझ प्यार की?
अब मेरे दिल के बंद झरोखे पे,
आप यूँ दस्तक ना दीजिए,
यादों में जीने के इस आदत को,
मिलन की झूठी आस ना दीजिए॥
यूँही आकर जाना अगर आपकी फ़िद्रत है,
तो कभी आप ना आना फिर मेरी किंदगी,
आपकी यादों में जीना सीख लिया हूँ,
पर आपके आकर जाने का ग़म ना सह पाऊँगा कभी।
कुणाल कुमार ….