तुमसे दूर रहने की,
सजा दी है मैंने खुद को,
सब के साथ रहते हुए भी,
अकेला किया मैंने खुद को।
अपने अश्रुओं से सिंचकर,
कठोर किया हैं मैंने अपने खुद को,
जैसे कोई दीवार बनाते समय,
पानी से भिगोते है हम लोग।
तुम्हें लगेगा मैं भूल गया,
सारे बंधन पीछे छूट गया,
पर भूलने की जगह पे,
मैंने खुद को सिर्फ़ चुप कर लिया।
कुणाल कुमार