सोचता हूँ लिख डालू, अपने जीवन की सच्चाई,
मेरे मुस्कान में छिपी, बाँट लू मेरे दर्द हर लम्हे तुझसे,
बचपन के वो सुनहरे पल, जिसकी याद से सबको मिलती ख़ुशी,
मेरी कहानी हैं कुछ ऐसी, बचपन के सपनों से अब डर लगे मुझे,
एक तरफ़ बीमारी की यादें, दूसरी तरफ़ शारीरिक यातनाएँ,
जीवन के इस सुनहरे पल में, दर्द मिला काफ़ी अपनों से मुझे,
फिर आयी जवानी की बारी, सोचा बचपन भूल आगे बढ़ूँ,
इधर भी भाग्य की अंधेरी चादर, खड़ा राह रोके हुए मेरी,
हुआ मैं पक्षाघात का शिकार, शरीर ने दिए नए विकार,
काट ली मैंने अपनी जवानी, माँ सरस्वती के चरणों तले,
भूला सुख जवानी की, मिली यादें मुझे नीरशता भरी,
याद से भी डरे मुझे, मेरी जवानी के वो भद्दे यादें भरे पल,
आगे आयी अधेरावशता, व्यस्तता में कटने लगा जीवन,
इस अवस्था में किधर छोड़ी, मेरी सेहत की मजबूरियाँ,
इक दिन फिर ऐसा आया, पक्षाघात की हुई वापसी,
जीवन मरण के बीच, फँस गयी थी मेरी प्यारी ज़िंदगी,
इक बात तो थी मुझमें, पनस मिले काफ़ी मेरे जीवन पथ पे,
परंतु धन्य हैं प्रभु मेरे, सब सहने की क्षमता जो मुझमें भर दी,
वापस आया उठ अपने पथ पे, पीछे छोड़ा सारे कष्ट,
ख़ुशी जीवन की आस लिए, फिर की इक नयी शुरुआत,
इक दिन बैठा अपने मेज़ पे, सामने आयी ज़िंदगी कि ख़ुशी,
बता अपने दिल की बात, ख़्वाब सुनहरे ज़िंदगी का लिए हुए आस,
ज़िंदगी को जीने की आस, करने लगा उसके मैं इंतज़ार,
पर क्या ज़िंदगी की सच्चाई भूल, कर दी फिर मैंने वो भूल,
ख़ुशी और मेरा साथ, नहीं बना है इक दूजे के लिए,
छोड़ चली वो भी मुझे, लिए अपने मन अपनी ख़ुशी.
….
….
आगे अभी लिखना है काफ़ी, पर मेरी हाथे थम सी गयी,
फिर कभी लिखूँगा मैं, अपनी जीवन की अधूरी सी दास्तान,
समझ नहीं आता हैं मुझे, क्यों ज़िंदा हूँ अब तक मैं…………
आँखों की अश्रु अब सूखे, बस ख़ुशी की करे इंतज़ार
के.के.