विश्वास…

विश्वास हमें क्यों नहीं होता हैं,
वो ख़ुदगर्ज़ी में मुझे छोड़ बढ़ चले,
अपनी दिल के किसी कोने में,
मेरी याद वो वो दफ़न कर बैठे।

बस गुस्ताखी इतनी हुई मुझसे,
चाहा आपको मैंने खुद से बढ़कर,
आपसे ज़्यादा चाहने की सजा मुझे मिली,
इसीलिए आप मुझे मेरे हाल पे छोड़ चले।

वैसे मैंने देखा हैं आपको,
करते वही जो आप समझे सही,
फिर भी ना जाने क्यों बहाना बनाया आपने,
लोग क्या कहेंगे कहकर मुझे छोड़ चली।

याद रखो आप एक महवत्पूर्ण बात,
लोग देते हैं साथ अगर आपको खुद पर हो विश्वास,
लोग समाज बनाने का काम करते हैं,
ना की रिश्तों को तोड़ने में लोगों का नाम होते है।

कुणाल कुमार

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