काश…

काश कभी समझ पाता मैं,
ज़िंदगी में यादों की अहमियत,
और भूल पाता उन लम्हों को,
जिन लम्हों में मैंने कुछ कहा तुम्हें।

दर्द दिए काफ़ी मैंने,
बस एक लफ़्ज़ सुनने के लिए,
पर जब समझा वो लफ़्ज़ थे नहीं कभी मेरे लिए,
तो कैसे कह पाती वो तुम मुझे।

काश मैंने थोड़ी जल्दी ना की होती,
ना बयान किया होता हाल ए दिल तुम्हें,
तो दर्द में नहीं जी रहा होता कभी,
और भूल पाता तुम्हारे लिए प्यार था कभी।

कुणाल कुमार

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मेरी दुनियाँ…

जहाँ हर रिश्ते बंधे हुए हैं,
स्वार्थ के धागे से हो पिरो,
जब नहीं बचा खुद के लिए मैं,
तो कैसे दे पाऊँगा ये ज़िंदगी तुम्हें।

ये उलझी सी ज़िंदगी को,
सुलझाने की कोशिश ना कर कभी,
खुद में उलझ कर रह जाएगी,
सुलझने की जगह और सुलग जाएगी।

नतमस्तक हूँ परिस्थिथियो के आगे,
शायद परिश्तिथि में ही कुछ हो परिवर्तन,
आजकल इस उम्मीद में ख़ुश रहता हूँ,
की शायद उम्मीद ही सुलझाएगी मेरी ज़िंदगी।

कुणाल कुमार

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दिल…

दिल के अल्फ़ाज़,
दिल में रह जाना बेहतर है,
जब समझने वाले नासमझ बन बैठें,
तो समझाने का क्यों हम मेहनत करें।

शायद ही हैं कुछ नसीब वाले,
जिन्हें मिलता समझदार साथी,
बाक़ी सब तो बस जी रहे हैं,
अपनी समझ को सच्चाई समझकर।

ये तो फेर हैं समझ का,
कहीं आशायें रखे दिल प्यार की,
उम्मीद बना रखा जिससे प्यार की,
वो प्यार किसी और को सुख दे रहीं।

कुणाल कुमार

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किसान…

बारिश के बदरी से पूछो,
वर्षा क्यों नहीं वो करती हैं,
बंजर सूखे खेत को देख,
किसानों की नयन क्यों तरसती है।

दो वक्त के खाने की जुगाड़ में,
किसान की समय हमेशा कटती हैं,
खुद का पेट भूखा रह जाए पर,
पर मेहनत से किसान को नहीं परहेजी हैं।

चाहे बाढ़ में बह जाए फसलें किसान की,
फिर भी धैर्य नहीं ढलती है,
फिर उदय होता है किसान की मेहनत,
लेकर सोने सा फसल खेतों में।

कुणाल कुमार

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नसीब अपना अपना…

ज़िंदगी है एक सर्कस,
यहाँ नसीब कर रहा हैं कसरत,
कुछ कर्म से नसीब वाले हैं,
और कुछ जन्मे हैं नसीब लेकर।

कभी ऊपर कभी नीचे,
ज़िंदगी में रहे उतार चढ़ाव,
हौसले और कर्म का दामन पकड़,
नसीब को बुलंदियों तक ले जाए इंसान।

पर कौन समझाए सोच के परिपेक्ष को,
करे वही जो सोचे इंसान,
सच्चाई कुंठित होती है सोच के परिपेक्ष से,
भूल जाते है खुद को झूठ के बनावट से।

कुणाल कुमार

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मौसम…

कभी बारिश कभी धूप,
इसमें मौसम का क्या हैं क़सूर,
हँसना इतना आसान हैं जब,
तो क्यों बरस पड़ता है नयन पाकर दुःख।

देखा हैं मैंने एक सतरंगी ख़्वाब,
जिसमें पाया तुमको अपने काफ़ी पास,
सिंच रहा अपने प्यार भरे बगीचे को,
अपने विरह से निकला अश्रुओं के साथ।

शायद पिघल जाए तेरा पत्थर दिल,
या बन जाए मेरा प्यार बिन मौसम बरसात,
सिंच दे मेरे बगीचे को भर प्यार दिल में,
और बना ले मुझे अपना देकर ढेर सारा प्यार।

कुणाल कुमार

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क्या मैं इंसान नहीं…

या मैं इंसान नहीं,
भावनाएँ की क्या हैं मुझमें कमी,
हँसता रहता हूँ ओढ़ बनावट की ख़ुशी,
पर दिल रो रहा है मेरा सुन तेरी हर बात कही।

तुम्हें क्या मालूम ख़ुश दिखना हैं इतना कठिन,
जो जी रहा हूँ बस याद लिए तेरा दिल,
जाओ तुम भी ख़ुश रहो और पा लो अपनी मंजिल,
याद ना करना कभी और खोजना ना मुझमें तुम अपनी ख़ुशी।

अलविदा मेरा दिल तुम जाओं ख़ुशी ख़ुशी,

कुणाल कुमार

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बिना मौसम के बरसात…

ख़्वाब से भरे बादल में,
जब जुदाई की ग़म है गहराई,
यादों की बिजली कड़क कर,
नयनों से बिना मौसम के बरसात निकल आई।

शायद जीवन रूपी बीज को,
मेरे नसीब के ग़म से करनी थी सिंचाई,
इसीलिए आज मुझे तुम्हारी याद से भरी,
मेरे ख़्वाबों के बादल से नयन भर आई।

कोसता हूँ जीवन के उस प्रहर को,
जब मुलाक़ात हुई मेरे जीवन को मेरे जीवन से,
तुम तो चली गयी किसी और के जीवन में,
मेरे उर्वरक सी जीवन को वीरान बंजर कर के।

कुणाल कुमार

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मैंने देखी है…

मैंने देखी है,
छिपी हुई आपकी ख़ूबसूरती,
डाँट तो लेती है आप मुझे,
पर मजाल कोई और मुझसे कुछ कहे।😆😂😊

मेरे दर्द को अपना बनाने की चाहत,
मेरे ग़म में आप ढूँढ लेती है मेरी ख़ुशी,
कितने नसीब वाले होंगे वो दिल वाले,
जिसको साथ मिले आपके दिल की ख़ूबशूरती। 😍😘🥰

मेरा दिल चाहता हैं आपको,
भूल जाता हूँ खुद को जब आप होती है क़रीब,
पर आपकी मस्ती तो है करीश की यौवन की जैसी,
जिसे रोक सके सिर्फ़ निष्ठुर महौत की अंकुश।

मेरा प्यार निष्ठुर नहीं औरों जैसी,
की सोचे सिर्फ़ अपने लिए,
जा तुम ढूँढ लो निष्ठुर के बीच अपनी ख़ुशी,
मुझे भूलने की दुआ है अब तेरे लिए।

कुणाल कुमार

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मेरा क़सूर…

कैसे समझाऊँ मैं तुम्हें,
जब समझ नहीं सकती हों तुम मुझे,
तुम्हारे इकरार से इंकार के सफ़र के बीच,
मैंने तो सिर्फ़ प्यार ही किया हैं तुमसे।

शायद होंगे कोई और आपके अपने,
आपको अपना बनाने के लिए,
मेरी ख़ुशी तो सिर्फ़ आप ही थी,
पर आपको ख़ुशी ना दे पाया मेरा दिल।

जब प्यार ना मिले दिल को,
जी लेता है वो अवसाद भरे याद लिए दिल में,
टूटे ख़्वाब को सम्भाल खुद में,
चाहत को लगा लेता हैं पूर्णविराम।

बस समझने की कोशिश कर रहा हैं मेरा मन,
क्या खुद से ज़्यादा आपको चाहना था मेरा क़सूर,
या था आपके आत्मविश्वास में कुछ कमी,
जो ना अपना सकी मुझे लोगों के कहने के डर से।

कुणाल कुमार

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साथ…

तुम कहती हो अपना ख़्याल रखना,
सेहत का वास्ता है तुम्हारा दलील,
पर क्या करना इस सेहत का जनाब,
जब आपके साथ में प्यार नहीं दिखे मेरे लिए।

कैसी है ये अजीब उलझन,
जो सुलझने के नाम पर आपको मुझसे माँगे,
इससे अच्छा तो उलझा रहे ज़िंदगी,
जब तक मेरी साँसें आपके साथ चले।

ख़ुश रहने की चाहत किसे नहीं,
पर ख़ुशी तो पाना हैं हमें खुद से,
पास आ जाओ मेरे दिल के क़रीब,
बस जाओ मुझमें बनकर तुम मेरी।

कुणाल कुमार

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कभी कभी…

कभी कभी दिल की कही,
दिल में ही घुट कर रह जाते हैं,
जिससे उम्मीद थी दिल को जब वो भूल जाते हैं,
तब खामोशी ही जीवन जीने की सबब बन जाते हैं।

कभी कभी ज़ुबान से फिसली आह,
दिल में उठे दर्द को बयान कर जाती है,
उनकी अहसास तो थी मेरे लिए सर्द भरी,
तो कहाँ से प्यार की गरमाहट हम अपने रिश्ते को दे पाते।

कभी कभी मेरे प्यार भरी अहसास में,
वो भी थोड़ा पिघल कर पास आ जाती,
फिर शायद अंदर का जातीय प्रांतीय अहसास,
सारे रिश्ते तोड़ उन्हें मुझसे बहुत दूर कर जाती।

कभी कभी सोचता हूँ मैं गम्भीर होकर,
क्या ये हैं उनकी सोच या हैं ये उनके दिल का खोट,
क्यों वो दिल्लगी तो किया करते है मुझसे,
जब प्यार निभाने की अनुमति नहीं है उनके दिल को।

कुणाल कुमार

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