काश कभी समझ पाता मैं,
ज़िंदगी में यादों की अहमियत,
और भूल पाता उन लम्हों को,
जिन लम्हों में मैंने कुछ कहा तुम्हें।
दर्द दिए काफ़ी मैंने,
बस एक लफ़्ज़ सुनने के लिए,
पर जब समझा वो लफ़्ज़ थे नहीं कभी मेरे लिए,
तो कैसे कह पाती वो तुम मुझे।
काश मैंने थोड़ी जल्दी ना की होती,
ना बयान किया होता हाल ए दिल तुम्हें,
तो दर्द में नहीं जी रहा होता कभी,
और भूल पाता तुम्हारे लिए प्यार था कभी।
कुणाल कुमार
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