तुम कौन हों…

तुम कौन हो,
ये समझ नहीं पाया कभी मैंने,
कभी तुम सच्ची दिखती हो,
कभी अच्छी लगती हो मुझे।

ये कौन सा गुनाह किया है मैंने,
जिसकी सजा काट रहा खुद में,
जो दिल तो मैंने दे दिया हैं तुम्हें,
पर प्यार ना मिला कभी मुझे तुमसे।

तुम कौन हो,
जिसके पास आने को मचलता है मेरा दिल,
पर पास आने के बाद ना जाने क्यों,
दर्द में तड़पता है मेरा ये दिल।

सुबह हो या शाम,
बस अब और नहीं है कुछ काम,
भूल गया हूँ मैं खुद को,
पर ना भूल पा रहा है तुम्हें ये दिल।

कुणाल कुमार

समझ की फेर…

जैसे कभी धूप में,
मन चाहे छाँव की चादर,
वैसे द्विविधा लिए मन,
चाहे तुम्हारे साथ अहसास भरी।

पर ये क्या स्वार्थ है मेरा,
जो चाहता रहता है तुम्हें हर घड़ी,
बस एक अनुभूति ही काफ़ी है तुम्हारी,
मुझे अब जीने के लिए।

शायद अपने दिल की बात,
ना समझा पाऊँगा तुम्हें मैं कभी,
इसीलिए अच्छा होगा अगर,
तुम भूल जाओ मुझे अभी।

मैं कुछ ना बोलूँगा,
जी लूँगा जब तक कर्तव्य चाहेगा मेरी,
फिर छोड़ जाऊँगा दूर कहीं,
वापस म लौटने की क़सम दिल लिए।

दूर से ही सही,
ये दिल चाहता रहेगा तुम्हें ही घड़ी,
पर वापस आने की हिम्मत,
अब ये ना जुटा पाएगा कभी।

चलो अलविदा कह दो मेरे दिल,
उसे जीने दो उसकी हर ख़ुशी,
चाहे तुम प्यार करो उससे पर,
अपने अहसास को ना प्रकट होने दो कभी।

कुणाल कुमार

प्यार…

सोचता हूँ क्यों,
बार बार कहता हूँ मुझे प्यार है तुमसे,
अगर प्यार होता तुम्हें कभी मुझसे,
तो समझ जाती मेरा प्यार अपने दिल से।

शायद इसीलिए कहती हो तुम,
पत्थर दिल है तुम्हारा मेरे लिए,
अब चाहे जितना भी चाहूँ तुम्हें,
नहीं आएगी दिल में चाहत मेरे लिए।

क्या बोलूँ मैं तुम्हें,
शायद मजबूर हो तुम खुद से,
सोच की क़ैद में है ये दिल तेरा,
जो चाह कर भी चाह नहीं सकता है मुझे।

शायद मेरा प्यार,
है एक अधूरी सी कहानी,
जो पूरी ना हो सकती थी कभी,
क्योंकि इसमें प्यार तुम्हारी की स्याही नहीं थी।

कुणाल कुमार

पत्थर दिल…

भावनाओं से परे,
अपनी ही सोच से,
अलग ही परिभाषा अपना,
सोचती हो तुम पत्थर दिल से।

कहती हो चाहत नहीं है,
सिर्फ़ अवसाद भरा है दिल में,
पर क्यों मायूस दिखती हो,
जब दूर जाती हो तुम मुझसे।

क्या ये पत्थर दिल तुम्हारा,
हैं सबके लिए एक समान,
फिर धड़कता क्यों हैं अपनों के लिए,
जिनसे चाहती हो तुम ढेर सारा प्यार।

शायद भूल क्यों गयी तुम मुझे,
जिसने चाहा है सिर्फ़ तुम्हें,
तुम कहती हो पत्थर दिल है तेरा,
पर इस पत्थर में प्यार बसा है मेरा।

शायद भूल जाओगी,
जब जाओगी तुम दूर मुझसे,
पर याद रखना अपने इस पत्थर दिल में,
एक आशिक़ है जो प्यार सिर्फ़ करता है तुमसे।

पर आज देखो,
पत्थर से हो गया है प्यार मुझे,
अपने अहसास के फूलो से सजा,
दिल के मंदिर में बसा रखा है तुम्हें।

कुणाल कुमार

सुनो ना…

सुनो ना,
कुछ कहना हैं मुझे,
अपने व्यस्त जीवन से,
कुछ समय निकलो ना मेरे लिए।

चाहता हूँ ढेर सारा,
बात करूँ सिर्फ़ तुमसे,
कुछ कहूँ दिल की बात,
महसूस करूँ तुम्हारी अहसास।

सुनो ना,
क्या कुछ ग़लत किया है मैंने,
चाहना अगर ग़लत है दिल से,
तो भूलने की कोशिश करूँगा मैं आज से।

कुणाल कुमार

दीपक…

दीपक सा बन मैं,
खुद को जलाता चला गया,
औरों को रोशनी दिखाई मैंने,
खुद डूबा रहा लांछन भरी कालिमा में।

कभी नहीं सोचा खुद का,
ना चाहत बची थी सोचने की,
बस खुद को जलाता चला गया,
औरों की ख़ुशियों के लिए।

हर घड़ी रहे रोशन तुम्हारी,
ख़ुशियों की उजाले से प्रज्वलित रहे दिन,
ग़म की कालिमा रहे दूर तुमसे,
चाहे जलना पड़े मुझे ग़म लिए दिल।

कुणाल कुमार

ये नयन मेरी…

ये नयन मेरी,
दर्पण मेरी अस्तित्व की,
ख़ुशी हो या ग़म,
गवाही देती है ये मेरे दिल की।

जाने से दूर तेरे,
छलक पड़ती है ये ग़म में,
पास आकर तेरे,
ख़ुशियाँ दिखती है इसमें ढेर सारी।

ये नयन मेरी,
कह रही है ये कहानी मेरी,
इंकार और इकरार का सफ़र,
देखी है ये बातें तुम्हारी कही।

कुणाल कुमार