कौन…

यों पास आते है लोग,
प्यार करने का दिखावा करते है अनेक,
जब दिल चाहने लगता है उन्हें,
तभी असलियत से पहचान करवाते है वो हमें।

इज़्ज़त और अभिमान,
जीना था हमें लिए स्वामिभान,
पहले तो किया आपने प्यार,
फिर कुचल दिया हैं मेरा स्वामिभान।

क्यों निरीह सा बनूँ मैं,
नहीं झुकना है मुझे कभी,
सर उठा कर जीना है मुझे,
चाहे जीवन जीना परे अकेले अभी।

कुणाल कुमार
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उपहार…

कवि बना,
भूल गया मैं सब कुछ,
प्यार तो हुआ नहीं तुम्हें मुझसे,
पर सोच क्यों हुई खोटी तुम्हारी मेरे लिए।

मैंने तो जीना सिखा,
तुम्हारे अहसास के अनुभूति से,
तुमने क्यों नहीं सोचा कभी,
मेरे दिल में सिर्फ़ प्यार था तेरे लिए।

आज मैंने वादा किया खुदसे,
भूल जाऊँगा तुम्हारी याद को खुदसे,
बस थोड़ा समय दो तुम मुझे,
ताकि दफ़न कर दूँ हर याद को अपने दिल में।

यही है मेरे जन्मदिन का तोहफ़ा तेरे लिए…..

कुणाल कुमार
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उपहार…

कवि बना,
भूल गया मैं सब कुछ,
प्यार तो हुआ नहीं तुम्हें मुझसे,
पर सोच क्यों हुई खोटी तुम्हारी मेरे लिए।

मैंने तो जीना सिखा,
तुम्हारे अहसास के अनुभूति से,
तुमने क्यों नहीं सोचा कभी,
मेरे दिल में सिर्फ़ प्यार था तेरे लिए।

आज मैंने वादा किया खुदसे,
भूल जाऊँगा तुम्हारी याद को दिलसे,
बस थोड़ा समय दो तुम मुझे,
ताकि दफ़न कर दूँ हर याद को अपने दिल में।

यही है मेरे जन्मदिन का तोहफ़ा तेरे लिए…..

कुणाल कुमार
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दर्द…

तुम्हारे दर्द का अहसास,
मुझसे बेहतर कौन जानेगा,
जो जी रहा हैं तेरे याद में,
तुमसे दूर रहने का दर्द दिल लिए।

शायद ये सोच की दिवार है,
जो दूर रखा है आपको मुझसे,
वैसे तो मैं तैयार था,
और आज भी तैयार हूँ समझने को तुम्हें।

कभी कभी होता हैं,
कुछ लोगों को हम समझते हैं अपने,
पर जो तुम्हें अपने हाल पे छोड़ दे,
उनके लिए तकलीफ़ क्यों है दिल में तेरे।

भी सोचो तुम ज़रा,
शायद सच्चाई हो तुम्हारे खड़ा,
चाहता है तुम्हें सच्चे दिल से,
पर तुम्हें ना जाने क्यों मतलब दिखता है उसमें।

बस इतना करना है आज तुम्हें,
भूल जाओ जो नहीं हैं तुम्हारे अपने,
अब खुद का वजूद बनाओ तुम,
ताकि पराए भी तरसे तुम्हें बनाने को अपने।

कुणाल कुमार
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भोली सी सूरत…

भोली सी सूरत में,
तुम समेटे हो कितने राज,
कभी तुम मुझसे दूर हो,
कभी तुम हों मेरे पास।

कभी इकरार कभी इंकार,
ये नाटक देखा मैंने सौ सौ बार,
मान लिया तुम्हें खुद से है प्यार,
पर काश तुम समझ पाती औरों का भी प्यार।

अभी तक सोचती हो,
तुम जी सकती हो दोहरी ज़िंदगी,
जिसके लिए दिल में है तुम्हें प्यार,
उसके लिए तुम हो बस एक अतिरिक्त यार।

अब थोड़ा आगे का सोचो,
अपने सोच के परिप्रेक्ष्य से निकलो,
जो तुम्हारे लिए नहीं छोड़ सकता अपनी ख़ुशी,
उसकी सोच लेकर क्यों जी रही हो तुम अपनी ज़िंदगी।

कुणाल कुमार
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अतिरिक्त ख़ुशी…

सर्द हवाओं के थपेड़ों से,
मेरे यादों के झरोखे खुल से गए,
जिन यादों को बंद रखा था दिल में,
वो आँखों से चुप चाप बह निकले।

सच्चाई बयान नहीं कर सकता,
दूर रहने का ग़म छुपा भी नहीं सकता,
इसी कशमकस में कट रही है ज़िंदगी,
इंतज़ार हैं काश तुम समझ पाती मुझे कभी।

नहीं जीना हैं मुझे,
बनकर तुम्हारी अतिरिक्त ख़ुशी,
बस जीना है मुझे,
बनकर तुम्हारी हर ख़ुशी।

कुणाल कुमार
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