उनके क़रीब आने से,
क्यों अच्छा लगता है मुझे,
क्या ये मेरी अपनी सच्चाई हैं,
या उनके प्यार में इतनी गहराई हैं?
उनके कहे हर एक शब्द में,
उलझ कर रह जाता था मैं,
चाहे कड़वा ही क्यों ना बोले वो,
मुझे सिर्फ़ मिठास ही नज़र आता है उनमें।
जनता था मेरा ये दिल,
उनका प्यार पाना है मुश्किल,
पर मेरी मजबूरी कैसी हैं ये,
चाहत की आग क्यों जल रही है दिल में।
भूलना चाहता हूँ उनको,
शायद यही अच्छा है मेरे लिए,
क्योंकि हर किसी को प्यार नहीं मिलता,
चाहे कितनी भी सच्चाई हो उनके दिल में।
चलो एक बात तो अच्छा हुआ,
विश्वास टूटा मेरा प्यार से,
क्योंकि आज के मतलबी दुनिया में,
प्यार बिकता है अपनी सहूलियत के लिए।
शायद जब तक ज़रूरत थी,
याद करती थी वो मुझे,
अब कोई काम नहीं है मुझसे,
तो क्यों याद रखेंगी वो मुझे।
शायद इसे कहते है ज़िंदगी,
जहाँ रिश्ते जुड़े है सिर्फ़ मतलब से,
मतलब निकला तो रिश्ते टूटे,
कोई बताए ऐसे रिश्ते में हम प्यार क्यों ढूँढे।
कुणाल कुमार
Wah! Bahot khoob!
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धन्यवाद
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बातों के अंदर भी बात है और दिल के अंदर जज्बातों का संसार है। वाह क्या बात है!
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धन्यवाद
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आपको भी धन्यवाद!
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