सोचता हूँ कभी कभी,
क्यों समझ नही पाई आप मुझे,
क्या कुछ ग़लत किया प्यार कर मैंने,
या आप समझना नहीं चाहती हो मेरी कही।
काश समझ पाती हाल ए दिल कि कही,
बनकर रह जाता मैं आपका आपके क़रीब,
पर देखो कैसी है दिल कि मजबूरी,
जो चाहता हैं आपको दिल से पर नहीं पता आपको क़रीब।
शायद हैं ये मेरी हैं मजबूरी,
या हैं आपकी ख़ूबशूरती,
जो दिखे ताज सा सुंदर,
समेटे खुद में कब्र मेरे प्यार की।
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