ख़ुशी देख बनकर अनजान,
क्यों चाहते हो बनाना अलग पहचान,
अपनी ख़ुशी के लिए अपनों को भूलना,
क्या यहीं है तुम्हारे जीने की परिभाषा,
समय की है ये मजबूरी,
आज साथ तो कल बढ़ेगी दूरी,
क्या अपनी परछाई छोड़ कर तुम,
काट पाओगी अपना जीवन बिना धुरी,
अनेक मिलेंगे तुम्हें कहने को अपने,
याद दिलाएँगे तुम्हें वो बीते हुए पल,
पर क्या वो छोड़ सकते हैं खुद की ख़ुशी,
देने के लिए तुम्हें एक नयी पहचान,
शायद तुम्हारे सोच है महान,
जीना हैं बन दूसरों की पहचान,
दुख को दिल से अपना कर तुम,
कर रही हो ख़ुश रहने का स्वाँग।
कुणाल कुमार
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