टूटी सड़के तंग गालियाँ, लिए जीवन की बेबस घड़ियाँ,
मैं निराला इस सड़क पे, पिए जीवन को भर प्याला में,
अपनों को दिल में बिठाया, दिया प्यार भरा संग,
जीवन दिया प्यार दी, दिया इज़्ज़त भरी संसार,
अपनी ख़ुशी त्याग, संग उसके दिल को लगाया,
अपना संसार समझ, उसके घर को अपना बनाया,
छोड़ आयी अपने माँ का घर, संग छूटे अपने प्यारे,
सोचा था अपना बना, बसा लूँ एक छोटा संसार,
माँ के समान सास को माना, पिता समान ससुर,
पति पूजा देवता सा, ख़्याल में ना था कोई दूजा,
ख़ुशी भरी थी कुछ घड़ी, मेरे जीवन के पथ पे,
हर पल चंचल सा जीवन, समय गुजरे हंस के,
चिड़िया सीं उड़ती थी मैं, ऊँचाइयों को छूने की चाहत,
घर सवार चली मैं, अपने भविष्य को साथ लिए निखार,
लगी किसी की ग्रहण अजीब, खोटा हुआ मेरा नसीब,
शक और संशय ने लिया जन्म, जीवन हुआ जीना दुर्भर.
सास ससुर की खिटपिट प्रबल, छोड़े वयंग भरे बाण,
जीवन की इस दुविधा में, कोई ना दिया मेरा साथ,
सबने चाहा घर पे बैठूँ, सुनूँ उनके वयँग भरे बात,
लगा के रोक जीवन वृति पे, सदा सुनूँ उनके बकवास,
जी ना पाई उनके ढंग से, छोड़ी ना जीवन का अधिकार,
स्वतंत्रा जीवन का मूल मंत्र, ये कभी भूल ना सकी मैं,
अपने वृति पथ पे चलना, ये जो कर्तव्य है मेरा,
इतनी बात समझ ना सकी, कोई साथ दे क्यों मेरा,
स्वतंत्रा विचार के संग, अग्रसर अपने जीवन पथ पे,
टूटी सड़के तंग गालियाँ, लिए जीवन की बेबस घड़ियाँ.
के.के.