काली घटा सा धुँध, अब छाया हैं मेरे मन पे,
कुछ सोच ना पा रहा, क्या रखा मेरे जीवन में,
मेरी राह दिखाने वाली, अब छोड़ चली हैं मुझे,
राह की कठिनाइयाँ, अब खुद सहना हैं मुझे,
मेरा सपना कही खो सा गया, इस धुँध के तले,
अंधकार सा छा गयी हैं, मेरे जीवन के भविष्य पे,
क्या इस धुँध को पार, कभी होगा भविष्य मेरा उदय,
या मौत के कदमों की आहाट, सुन रहा उदास मन से,
होने को अब जो भी हो, सो रही अब मेरी ख़ुशियाँ,
जगाने वली ने ठान लिया, छोड़ मुझे अपने हाल पे.
कुणाल कुमार