प्यार…

सोचता हूँ क्यों,
बार बार कहता हूँ मुझे प्यार है तुमसे,
अगर प्यार होता तुम्हें कभी मुझसे,
तो समझ जाती मेरा प्यार अपने दिल से।

शायद इसीलिए कहती हो तुम,
पत्थर दिल है तुम्हारा मेरे लिए,
अब चाहे जितना भी चाहूँ तुम्हें,
नहीं आएगी दिल में चाहत मेरे लिए।

क्या बोलूँ मैं तुम्हें,
शायद मजबूर हो तुम खुद से,
सोच की क़ैद में है ये दिल तेरा,
जो चाह कर भी चाह नहीं सकता है मुझे।

शायद मेरा प्यार,
है एक अधूरी सी कहानी,
जो पूरी ना हो सकती थी कभी,
क्योंकि इसमें प्यार तुम्हारी की स्याही नहीं थी।

कुणाल कुमार

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