सोच के घोड़े को दे लगाम,
दिल के धड़कन को लिया था मैंने थाम,
याद आने पर बस यही ख़याल रखा है मैंने,
मिलेंगे ज़रूर पर फिर कभी।
समझ का ये फेर हैं,
उसके समझ में अभी थोड़ी देर हैं,
पर वो समझ पाए मुझे, यही ख़याल रखा है मैंने,
मिलेंगे ज़रूर पर फिर कभी।
इस ख़ुदगर्ज़ संसार में,
खुद के आगे कौन सोचता हैं?
शायद ये गलती मैंने की है,
खुद से ज़ायद तुम्हें तरजीह मैंने दी है।
मिलेंगे ज़रूर पर फिर कभी,
पर मैं ना रहूँगा वैसा जैसा था कभी,
देखते है जीतता कौन हैं,
तुम्हारी ज़िद्द या मेरे दिल की कही।
कुणाल कुमार
Lovely.
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Thank you
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