नहीं सोचा हैं मैंने,
कैसे कटेंगी मेरी ज़िंदगी,
जिसकी झलक देखने को बेचैन हैं दिल,
उसके बिना जीने की ईक्षा नहीं बची है इस दिल।
ये किसकी सोच थी,
किसने जुदा किया हैं दो दिल,
क्या चैन से जी पाएगा वो कभी,
जिसने चैन छीन ली है मेरी।
पर एक बात तो सत्य है,
अब दिखेगा मेरा दूसरा रूप,
जिसके तपिश से नहीं बचेगा कोई,
जिसने रची है गंद भरी मंजिल।
कुणाल कुमार