तुम कौन हो,
ये समझ नहीं पाया कभी मैंने,
कभी तुम सच्ची दिखती हो,
कभी अच्छी लगती हो मुझे।
ये कौन सा गुनाह किया है मैंने,
जिसकी सजा काट रहा खुद में,
जो दिल तो मैंने दे दिया हैं तुम्हें,
पर प्यार ना मिला कभी मुझे तुमसे।
तुम कौन हो,
जिसके पास आने को मचलता है मेरा दिल,
पर पास आने के बाद ना जाने क्यों,
दर्द में तड़पता है मेरा ये दिल।
सुबह हो या शाम,
बस अब और नहीं है कुछ काम,
भूल गया हूँ मैं खुद को,
पर ना भूल पा रहा है तुम्हें ये दिल।
कुणाल कुमार
लाज़वाब
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Thanks
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