दिन भर की कीच कीच,
जैसे अभिशाप बन गयी थी ज़िंदगी,
आज अकेले पहचाना मैं,
शांति से जीना ही हैं वरदान ज़िंदगी।
कुछ समय मैं सोच लूँ,
कुछ समय मुझे कोई समझ ले,
यादों के सहारे अब कट रही मेरी ज़िंदगी,
अब तमन्ना हैं यादों में ही कट जाए मेरी ज़िंदगी।
उनके पास जाने से डरता है ये ज़िंदगी,
पर उनके पास जाने को मचलता हैं मेरी ज़िंदगी,
सोचता हूँ क्या अपना लेगी वो मुझे,
पर डरता हूँ मेरे प्यार को वो गंदगी ना कह दे कही।
इसी उलझन में मैं जी रहा हूँ ज़िंदगी,
कभी हाँ कभी ना के तराज़ू पर तौल रहा हूँ अपनी मनःस्थिति,
आरज़ू हैं खुल कर जी लूँ अपनी ज़िंदगी,
लोगों को छोड़ो आप मुझे समझ पाओगी क्या कभी।
कुणाल कुमार
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