जहाँ हर रिश्ते बंधे हुए हैं,
स्वार्थ के धागे से हो पिरो,
जब नहीं बचा खुद के लिए मैं,
तो कैसे दे पाऊँगा ये ज़िंदगी तुम्हें।
ये उलझी सी ज़िंदगी को,
सुलझाने की कोशिश ना कर कभी,
खुद में उलझ कर रह जाएगी,
सुलझने की जगह और सुलग जाएगी।
नतमस्तक हूँ परिस्थिथियो के आगे,
शायद परिश्तिथि में ही कुछ हो परिवर्तन,
आजकल इस उम्मीद में ख़ुश रहता हूँ,
की शायद उम्मीद ही सुलझाएगी मेरी ज़िंदगी।
कुणाल कुमार
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आशा ही जीवन है।👍
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धन्यवाद
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