ज़िंदगी है एक सर्कस,
यहाँ नसीब कर रहा हैं कसरत,
कुछ कर्म से नसीब वाले हैं,
और कुछ जन्मे हैं नसीब लेकर।
कभी ऊपर कभी नीचे,
ज़िंदगी में रहे उतार चढ़ाव,
हौसले और कर्म का दामन पकड़,
नसीब को बुलंदियों तक ले जाए इंसान।
पर कौन समझाए सोच के परिपेक्ष को,
करे वही जो सोचे इंसान,
सच्चाई कुंठित होती है सोच के परिपेक्ष से,
भूल जाते है खुद को झूठ के बनावट से।
कुणाल कुमार
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