कैसे समझाऊँ मैं तुम्हें,
जब समझ नहीं सकती हों तुम मुझे,
तुम्हारे इकरार से इंकार के सफ़र के बीच,
मैंने तो सिर्फ़ प्यार ही किया हैं तुमसे।
शायद होंगे कोई और आपके अपने,
आपको अपना बनाने के लिए,
मेरी ख़ुशी तो सिर्फ़ आप ही थी,
पर आपको ख़ुशी ना दे पाया मेरा दिल।
जब प्यार ना मिले दिल को,
जी लेता है वो अवसाद भरे याद लिए दिल में,
टूटे ख़्वाब को सम्भाल खुद में,
चाहत को लगा लेता हैं पूर्णविराम।
बस समझने की कोशिश कर रहा हैं मेरा मन,
क्या खुद से ज़्यादा आपको चाहना था मेरा क़सूर,
या था आपके आत्मविश्वास में कुछ कमी,
जो ना अपना सकी मुझे लोगों के कहने के डर से।
कुणाल कुमार
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बहुत सुंदर विचार रखें!
कृपया इसको भी देखेंhttps://ankitsharma00.blogspot.com/2020/10/blog-post.html
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Thanks
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