आज जंग छिड़ी हैं मुझमें,
दिल बड़ी या दिमाग़ उससे,
सुनूँ दिल से जीवन का सच,
या सोचूँ दिमाग़ से खुद के लिए।
दिल देखता खुद को तुझमें,
साथ मिलती हैं जब उसे तेरा,
दिमाग़ बोलता ये तो फ़रेब है,
क्योंकि वो तो सोचती है सिर्फ़ खुद के लिए।
दिल दिमाग़ की कश्मकश में,
एक बात मुझे है अच्छी लगी,
दिल की सोच कैसी भी हो,
पर दिल के सोच में स्वार्थ नहीं।
कुणाल कुमार
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