शायद मेरी चाहत,
अपने नसीब पर रो रहा,
तुम्हें ख़ुश देखने के लिए,
खुद को खुद से भूल रहा।
भरोसा था खुद पर कभी,
शायद खुद को समझा पाऊँगा कभी,
पर आज तुम्हें अपनी दुनिया मे उलझा देख,
खुद के भरोसा पर शक हो रहा।
समझ नहीं आता मुझे,
अब जीने के लिए क्या करूँ,
तुम तो मेरी दुनिया बन गयी,
पर मैं नहीं जगह बना पाया तुम्हारे दिल में कभी।
पर आज तुम्हारी ज़िद्द के लिए,
मैंने अपनी चाहत को दिल में दफ़ना,
दिल से रोता हुआ मैं,
चुप। चाप जीवन जी रहा।
कुणाल कुमार