क़ैद में हैं परिंदा,
उड़ना चाहे ऊँचे गगन में,
पर झूठे माहौल में,
क़ैद ही उसे लगे उसे उचित,
पंख सोच के सलाख़ों से टकरा,
टूट चुका है, जैसे उसका हौसला,
उड़ान की उसके दिल की इक्षा,
मर चुकी हैं अब उसके सोच में,
क्या परिंदा क़ैद में हैं?
तड़प रहा लिए दिल में उड़ने की कसक,
पर लगता है परिंदा वैसे तो आज़ाद है,
पर क़ैद में हैं आज भी उसका सोच,
क्या खूब चली हैं बहेलिया ने चाल,
क़ैद में किया परिंदे की उड़ान,
तन से छोड़ आज़ाद उसे,
सोच से किया परिंदे को अपना ग़ुलाम।
कुणाल कुमार
Insta: @madhu.kosh
Telegram: https://t.me/madhukosh
Website: https://madhukosh.com