नहीं और ना से लिखी हुई मेरी नियति,
कैसे स्वीकार्य कर सकता हैं किसी की दी ख़ुशी,
ख़ुश रहो तुम अपने यादों के सहारे,
हम भी ख़ुश रहेंगे तुम्हारे दिए झूठे वादों के सहारे।
अपनी सोच के चश्मे से तुम सिर्फ़ देखती हो ज़िंदगी,
वही दिखेगा तुम्हें जिसको सोचती तुम रहीं,
पर क्या उसकी भी धड़कन कभी धड़कती है तेरे लिए,
या सिर्फ़ तुम्हें एहसास दिला जी रहा है मज़े में अपनी ज़िंदगी।
तुम कहती हो की पत्थर है ये दिल,
फिर कैसे धड़कता हैं किसी और के लिए,
मैंने बोला था की ये दिल धड़केगा ज़रूर,
चाहे मुझे मेरी वजूद ही मिटानी पड़े,
तुम ख़ुश रहो अपने धड़कते दिल के साथ,
समेट उसे अपने आग़ोश में दे ढेर सारा प्यार,
अब वही है तुम्हारी धड़कता दिल और हर ख़ुशी,
मैं दूर जाकर जी लूँगा यादों के सहारे अपनी ज़िंदगी।
कुणाल कुमार
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