कभी सोचूँ खुद पे,
या कोसूँ जो अपनी नसीब को,
प्यार की कसक दिल लिए ,
खोजूँ उधार की गोद,
क्या चाह नहीं है मुझमें,
या चाहने की इजाज़त नहीं है मुझे,
क्या जीवन है मेरा,
जैसे तड़पता प्यार को प्यासा रेगिस्तान।
क्या मेरी चाहत है,
कोई काग़ज़ की कस्ती के समान,
जो डूब जाए जब हो मर्ज़ी,
या हो तेरे हुक्म का ग़ुलाम।
क्या मिलेगी मुझे कभी ,
मेरी तड़पती प्यार को इक मुक़ाम,
इक इकरार को तरसता,
दे रहा मेरा प्यार कई कई इम्तिहान।
क्या मुझे हक्क नहीं,
ख़ुशी की छोटी सी प्यार भरी मुस्कान,
मेरा प्यार झूठा नहीं,
खोजे शकुन भरी इक उधर की गोद।
कुणाल कुमार
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