देखो देखो बंदर आया, गुलाटिया मारे मन को भाया,
नन्हे बच्चे खुश देख उन्हें, संग संग खूब धूम मचाया,
राजनीति का है ये बंदर, दिखे बड़ा ही मस्त कलंदर,
कभी कूदे इस पार्टी, और कभी कूदे सत्ता के संग ,
मज़े से देखो उनकी शान, राजनीति के खिलाड़ी महान,
ऊधम कूद मचा ये बंदर, अपनी कुर्सी का जगह बनाए,
इस बंदर का कमाल अनूठा, सबको ये बनाए झूठा,
झूठ बोले हर घड़ी, अपनी ही ये बनाए घड़ी,
उसे क्या पता, क्या समय किसी का हुआ कभी,
उसकी घड़ी उल्टी पड़ी, अब पछताए उसका मन,
अब क्या करे ये बंदर, पछताए दुःख लिए अपने अंदर,
जाए किधर समझ ना पाए, घर छूटा सत्ता भी गमाए.
कुणाल कुमार