क्या हुआ यहाँ, और क्यों डरा सा दिख रहा इंसान,
मेरी भाग दौर भरी ज़िंदगी, आज क्यों ठहर गयी यहाँ,
क्या मुझसे भूल हुई ईश्वर, ये तो जरा तुम बताओ मुझे,
क्यों दे रहे हो सजा मुझे, अब उससे दूर रहना मुझे मंज़ूर नही,
मौत से डर नहीं लगता, इसीलिए दूर रहने की दी हैं सजा,
क्या अब मुझे जीना हैं, गले लगा जुदाई का ग़म मौत समान,
तुम्हें एक बार देखने का दिल, क्यों कर रहा हैं बार बार,
बाहर तो हैं जनता कर्फ़्यू, पर दिल में हैं हलचल ढेर सारी,
क्या करे दिल बेचारा, समझ नहीं आ रहा इसकी मजबूरी,
क्यों लगा बैठा दिल उससे, जो ना समझ सके दर्द भरी दूरी,
चलो हंस लो आज तुम मुझपर, अगर ना समझ सक्ती हो मेरी मजबूरी,
क्योंकि मैं थोड़ा ख़ुदगर्ज़ सा हूँ, नहीं बाँटना ये दर्द जो हैं मेरी.
के.के.