क्यों इतना डर हैं बैठा मेरे दिल में,
खुद को क्यों क़ैद कर बैठा मैं घर में,
जिस साँस के सहारे मेरी ज़िंदगी चल रही थी,
उस साँस को खुलकर मुझे लेने से डर लगता हैं,
क्या मेरी बची ज़िंदगी कटेगी तेरे याद के सहारे,
ज़िंदगी के डर से चली गयी तुम मुझे छोड़ अपने घर,
अब तो मेरी ज़िंदगी सिर्फ़ तुमसे ही हैं मेरी जान,
मेरी हर धड़कन पे लिखा हुआ हैं सिर्फ़ तेरा नाम,
सोचा था शायद इक बार तो पूछोगी मुझसे मेरा हाल,
तेरी आवाज़ सुन मेरी खुशी वपस लौट आएगी मेरे पास,
पर शायद तुम खुद में या अपने ख़ुदगर्ज़ी में हो इतना वयस्थ,
की भूल बैठी मुझे ऐसे जैसा मेरा कोई वजूद ना था तेरे लिए.
के. के.