मुझे दिख रहा उसकी नाराज़गी और तकलीफ़,
पर क्या करूँ मैं जो जगह ना बन सका उसके दिल में कभी,
मैंने दिल से अपना माना पर क्या ये है काफ़ी,
उसके दिल में चाहत का एक कोना ना तलाश पाया मैं,
क्या करूँ मैं चुप बैठा देख रहा उसकी परेसानियो का मंजर,
वो तो कुछ बोल नहीं रहीं तो कैसे समझूँ उसकी परेसानिया मैं,
अगर अपना मानी होती वो कभी अपने दिल से मुझे,
समझ पाता उसके दिल का हाल उतर कर उसके दिल में,
शायद अकेला ही यहाँ मुझे लड़ना इन परिश्तिथ्यो से,
ना समझ पाया उसे कभी, ना समझने की कोई चाहत मुझमें,
जो बोल मुझे अच्छे लगते थे वो बोल आज क्यों बन गए इतने कटु,
कटुता उसके बोल थी बसी या मेरी सोच में आ गयी थी खोट,
शायद मेरा दिल अब टूट कर बन गया पत्थर समान कठोर,
अब नहीं दिखती मुझे उसके दिल की कुछ भी कही,
कही दिल मेरा चुपके से बैठा रो रहा खुद के कही पे,
क्यों भूल किया मैंने जो लगाया दिल उससे कभी.
के. के.
Heartfelt thoughts shared with many unanswered questions.
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Thanks and that is life full of uncertainty
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