तारीफ़ के दो लफ़्ज़ कम पड़ जाते हैं आपके लिए,
बेहतर तरह से सम्भाल रखा है ज़िंदगी को आपने,
आपकी अन्दाज़ हैं कमाल, झूठ तो आप बोलती हैं बेमिसाल,
क्या खूब संयम है आपके पास, दिल की बात ज़ुबान पे ना आने दी,
सौंदर्य में हैं आप परिपूर्ण, लगती हैं खिलती कली समान,
ज़रा दिल की ख़ूबशूरती को भी खुल कर साँस लेने दे आप,
आपकी हँसी माहौल बना दे, रोते हुए को भी इक बार हँसा दे,
पर जनाब हँसते कहाँ हैं, जब दिखते है आप अपनों के साथ,
हर मर्ज़ का कारण है दर्द, क्यों छिपा कर रखा इसे दिल में आप,
बह जाने दे इसे अश्रुओं के साथ, अपना ले जो आपको देती हैं ख़ुशी,
किसका डर है आपके दिल में, किसकी हिम्मत जो आपको कुछ बोले,
आप ही ने तो हक्क दिया, इसीलिए हो सकता है कुछ लोग बोले,
अजी जनाब लोग हैं तो बोलेंगे ही, सुंदर रिश्ते को तोड़ेंगे ही,
आप कब डर बैठी लोगों से, खुद को तो आप शेर समझती,
शायद से शेर भूल गया जंगल, पिंजरे की जो लत लग गयी,
दांत नाखून सारे टूट गए, तभी लोगों की हिम्मत हुई बोलने कीं.
ये शेर चाहता हैं जंगल की आज़ादी, पर हैं पिंजरे का ये आदि,
शिकार करना वो भूल गया, सिर्फ़ करतब दिखाना ही बना उसका रीत,
खुद की ख़ुशी को भूल शेर, दुखी जीवन को अपना ख़ुशी समझा,
लोगों के इशारे पर नाचता रहा , शेर शिकार करना भूल जो गया.
के.के