सड़क की चहल पहल, वाहनों का गुजरना हैं पहचान,
मुसाफ़िर को मंजिल पहुँचाए, भटके को रास्ता दिखाए,
सिग्नल पे रुके लोग, इंतज़ार करे कब आएगा अपना वक्त,
सररऽऽ कर निकल पड़ना, जब आएगा उनका वक्त,
हर रोज़ कितने अनजान गाड़ी, निकल पड़ते अपने गंतव्य,
अपने मंजिल को लक्ष बना, चले जाते अपनों के साथ,
छोड़ जाते है सड़क को, जब मिलती है उनकी मंजिल,
सड़क बेचारा देख रहा, क्यों छोड़ गए साथ उसका सब,
मेरा जीवन भी सड़क समान, पहुँचना पथिक को उसका लक्ष,
अकेला हो जाता हूँ कभी कभी, जब जाते हैं सब साथ छोड़,
फिर भी मैं अपने पथ, लोगों को लक्ष्य पर पहुँचना हैं मेरा कर्तव,
शायद इक दिन ऐसा आएगा, जब कोई समझेगा मेरा दर्द.
के.के.
Wah .. very beautiful written…
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Thanks a lot.
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