दिल में दर्द उठता है, क्यों अपना ना बना सका तुम्हें,
क्या कमी मुझमें हैं, या मेरी प्यार तेरे लिए है ग़लत,
अपना समझी होती, तो इक बार स्वीकार लेती मुझे,
समझ लेती मेरे हँसते चेहरे के पीछे का दर्द यूँ ही कभी,
क्यों मैंने की ये गलती, अब खुद पे हँसता हैं मेरा मन,
ना किसी को बाँट सकता, और ना बना सकता कोई हमदम,
दिल मेरा चुरा कर ले गयी तुम, तुम जान भी चुपके से बन गयी,
अब क्या मैं जी सकता, बिना दिल और जान के सिवा?
अब तुम जाओ छोड़कर मुझे, कुच फ़रक नही पड़ता,
क्योंकि दिल और जान तो तुमने चुरा रखा है मेरा,
तेरी एक झलक देखने को मचलता है मन मेरा,
तुझे क्या तुम तो जी रही हो अपनों की ख़ुशी,
हम तो पराए थे, और पराए ही रह गये,
अपना तुम्हें बना लिया ये दिल, पर ना आ सका मैं तेरे क़रीब,
शायद मुझमें ही थी कोई कमी, या भूल गया अपना नसीब,
तेरा बनना तो दूर, तेरा साथ भी नहीं लिखा हैं मेरा नसीब.
के.के.