बालक रूठा भोलेपन में पूछा मेरा क्या है क़सूर,
क्यों डाँट पड़ी मुझे माँ से जो थोड़ी सी शैतानी कीं,
शायद बड़ा होकर करूँगा मैं सब अपनी मर्ज़ी का,
ना कोई मुझे डाँटेगा ना मैं डाँटूँगा किसी और को,
बालक नादान समझ ना पाए, माँ के डाँट में छिपी है प्यार,
उसकी भलाई के लिए, समझा रही है उसकी प्यारी माँ,
मन में ग़ुस्सा लिए भूल गया वो माँ का निश्चल सा प्यार,
इसीलिए बालक है नादान, माँ ने की उसकी हर भूल माफ़,
माँ ने किया अपनी ज़िंदगी, अपनी हर ख़ुशी अपने बच्चे के नाम,
पर बालक बड़ा होकर, दिया क्या अपने माँ को अपनापन भरा प्यार,
भूल गया वो माँ को, उलझ कर अपने जीवन में हो व्यस्त,
माँ अकेली रह गयी, जिसे दिया ज़िंदगी वो भूल गया उसे,
फिर भी माँ के चेहरे पे ना शिकन थी ना ही कोई गाम,
बच्चे की ख़ुशी से ख़ुश थी माँ हो अपने में ही मगन,
बच्चे को भी समझ आएगी जब जाएँगे छोड़ उसके बच्चे,
अकेलेपन कर दर्द, जब दिन रात सताएगा उसे.
के.के.