तेरी सोच को सलाम, यही समझा क्या तुमने मुझे,
जान से ज़्यादा चाहा मैंने, तुमने कहा मैंने ग़लत सोचा,
क्या कोई सोच सकता है, अपने लिए कभी ग़लत,
मैंने तो तुझे अपना समझा, ना सोचा था तुम कभी अलग,
शायद गलती की मैंने, बताई अपने दिल कि हर राज,
अपनापन के हद से गुज़र, अपना माना तुझे दिल से,
पर क्या सिला मिला मुझे, मेरी वो सोच जो चाहा तुझे,
क्या वो ग़लत हो सकता है, या कभी सोच सकता है ग़लत तेरे लिए,
पर जाने दो तुम जो भी सोचो, नही जीतना हैं मुझे कभी,
तेरी जीत में मेरी ख़ुशी है, यही सोचे मेरा दिल तेरे लिए.
के.के.