नाराज़गी या हो ग़ुस्सा तुम्हारा ना अपनाने का ज़िद्द,
पर एक बात तू समझ ले, तेरे आगे भी हैं इक ज़िंदगी,
शायद मैं भी आगे बढ़ जाऊँ देख तेरा ये ज़िद्द,
तू तो अपने में ख़ुश है मैं भी खोज लूँ अपनी ख़ुशी,
इक दिन ऐसा आएगा जब पछताऊँगी तुम,
मेरे दिल तोड़ने का दर्द तेरा दिल महसूस करेगा,
पर क्यों ये दिल मेरा इतना मजबूर सा हैं,
तेरे अलावा कुछ नहीं सोचता मेरा ये दिल,
शायद मेरे दिल को हुआ प्यार पहली पहली बार,
इसीलिए मचल रहा इतना पाने को तेरा प्यार,
शायद ये कोई नया नहीं तेरे दिल के लिए,
इस उम्र में मेरा दिल झूठ मूठ मचला तेरे लिए,
समझ नही आता अब करूँ क्या मैं,
कोई अपना बन क्या समझा पाएगा मुझे.
के.के.