बाग के फूल से, आज सुबह मुलाक़ात हुई मेरी,
सूर्योदय की पहली किरण, में निखार उठी इक कली,
बनकर फूल बोली वो मुझसे, सोच ज़रा तू मेरी,
क्यों कोई भी आकर तोड़ लेता हैं, मुझे यूँ ही,
डर लगता है खुद पे, क्यों निष्ठुर हैं मेरा भविष्य,
दो प्यार करने वाले दिल का गवाह,क्यों ना बन सकता हूँ मैं,
मैंने समझाया प्यारे से फूल को, यूँ उदास ना हो दिल से,
ज़िंदगी सुख दुःख का चक्र है, दोनो ही जीने की नियति,
ये तो हैं नसीब का खेल, सच्चे को यहाँ मिले झूठी आसा,
झूठे को मिले सारे सुख, कभी दुःख उनको ना छूने पाए,
मत सोच ज़िंदगी में लिखी हैं, सिर्फ़ ख़ुशियाँ बिना ग़म,
क्या मज़ा उस ज़िंदगी का, जहां ग़म का साया ना हो,
ग़म ग़म ना रहे, सारे दुःख बन जाए इक मीठी सी ख़ुशी,
जब तुम दुःख के दर्द का अहसास का लुफ़्त उठाओ दिल से,
बाग के फूल, तुम रहो ख़ुश यहाँ अपने दिल से भूल सारे ग़म,
उदास ना हो तुम, देना है तुम्हें ज़िंदगी को नयी पहचान.
के.के.