चाहत दिल में लिए चल रहा अपने कर्तव्र्ग पथ पर,
सोच रहा चाहत बड़ी या हैं कर्तव्य मुझसे बढ़कर,
उधेड़ बुन और अफ़रा तफ़री में काट रहा ये जीवन,
क्यों ये कर्तव्य हैं अलग मेरी चाहत से इस जीवन में,
शायद ये मेरा नसीब अच्छा जिसे मिली सिर्फ़ कर्तव्य,
चाहत तो सबको मिलती जिसका जीवन है सर्फ़ पाना,
कर्तव्य करे सिर्फ़ नसीब वाले छोड़ चले चाहत प्यार में,
चाहत उनके रूह में बसे कर्म बने उनका जीवन लक्ष्य,
जीवन जीना बिना कर्तव्य मुझे लगे हैं जीवन व्यर्थ,
पर क्या जीना चाहत बिना क्या महत्व इस जीवन का,
छोड़ना हैं आसान चाहे कर्तव्य हो या मेरी चाहत,
चाहत मेरी रूह हैं तो कर्तव्य से बने जीवन परिपूर्ण,
नसीब वाले वो हैं जिन्हें मिले चाहत अटूट,
उस चाहत को निभाना ही कर्तव्य जीवन की,
क्या चाहत का मतलब हैं सिर्फ़ पाना,
या चाहत को खोकर कर्तव्य को निभाना?
के.के.