तेरा साथ इक मधुर सा अहसास,
बन गयी हो तुम मेरी दिल और जान,
उफ़्फ़ तेरी ये ख़ूबशूरती तेरा ये अन्दाज़,
घायल कर गयी मेरी रूह लूट गयी मेरी जवानी,
तेरे नयनों की गहराई,
दिल करे डूबता ही रहु,
तेरे लबों की मधुरता,
जैसे खो जाऊँ इस सुंदरता,
जाने क्यों समा गयी हो तुम दिल में मेरे,
मेरे सोच अब है तेरी सोच से,
कभी सोचा ना था चाहूँगा तुझे इतना,
मेरा दिल ढूँढेगा खुद को तेरे दिल में,
शायद मेरी चाहत में हैं कोई कमी,
ना अहसास दिला पाया चाहत का तुझे,
इक बार इकरार कर देती,
बन जाती तुम मेरी ख़ुशी.
के.के.
सुंदर रचना।
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