जीवन मेरी इक अजीब सी उलझन हैं,
सोचता हूँ भूल जाऊँ वो पल जब क़रीब थी तुम,
पर क्या करूँ ये कमबख़्त एहसास तेरी,
याद बन कर बसी हैं बेचारे दिल में मेरे,
तरस आती हैं मुझे खुद पर अभी,
क्यों चाहा तुझे ये मेरा मजबूर दिल,
कैसी ये मजबूरी मेरी,
तुझे चाह कर भी समझा ना सकता कभी,
कितनी चाहत भरी दिल में,
सिर्फ़ हैं ये तेरे लिए,
मेरी सोच ने सोचा की हो जाऊँ दूर तुमसे,
तुमसे दूर रहना नहीं मंज़ूर इस दिल को,
चलो इक काम करता हूँ इस मजबूर दिल के लिए,
लिए याद तेरी दिल में जीने की कोशिश कर सकता,
थोड़ा कष्ट होगा जीने में मुझे,
अपनी तक़दीर समझ, जी लूँगा मेरी ज़िंदगी.
के.के.