कभी किसी को हद से ज़्यादा चाह के तुम देखो,
सच्चाई वही मिलेगी तुमको चाहत जहाँ सच्ची हो,
ना जीयो तुम इस भ्रम में, झूठ भरी चाहत मन में,
चाहत की सच्चाई हैं अच्छी, झूठ भरे किसी मन से,
चाहो जिसे वो ना चाहे, ये मजबूरी जो हो उनकी,
तुम्हारी चाहत में ना कमी हो, चाही तुम दिल से,
उसकी खुशी में तुम लुटो, भूल कर अपनी ख़ुशी,
ये सोच कर तुम प्यार करो, ना होगी कभी वो तेरी,
फिर भी अपने चाहत में, तुम ढूँढो उसकी ख़ुशी,
अपनी ख़ुशी को तुम ढूँढो, उसकी हर ख़ुशी में.
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के.के.
[…] कभी कभी — मधुर लघु काव्य संग्रह […]
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वाह!!
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