राम को मिला चौदह साल वनबास,
कष्ट मिले उन्हें हज़ार, और बार बार,
बन रघुवंसी क्यों ना सह लू अपना कष्ट,
जी लू अपनी ज़िंदगी, मैं खुद में रहकर,
आँखे अगर मेरी हो नम, फिर भी मुँह को रखूँ बंद,
खुद के ग़म खुद के नाम कर, पर दिखूँ ऊपर से मस्त,
क्योंकि ना कोई अपना इस जग में, समझ सके वो मुझे,
इस ख़ुदगर्ज़ जमाने में कभी, भरोसा ना करो अपनों पे,
अपना समझ जिसे मैं चाहा, अपना ग़म उससे बाँटा,
ग़म को मेरी कमजोरी समझ, मुझे तोड़ने वो चली,
ऐसे ख़ुदगर्ज़ जमाने से, अब मुझे कोई दर्द नहीं,
खुद में रहकर खुद के लिए, जीना मैंने सिख लिया,
अब मेरा हर ग़म, मैंने किया सिर्फ़ खुद के नाम,
झूट को भूल राह बनाया, मैं सिर्फ़ अपने काम,
देखते रहा ख़ुदगर्ज़ जमाने को, सब जी रहे अपने लिए,क्यों ना मैं भी,
जी लूँ, कर हर ख़ुशी सिर्फ़ अपने नाम.
के.के.