चपन छूठा, पैर परी जवानी की दलहिज,
वो अच्छे दिन बन गए, मेरी यादों की तस्वीर,
पीछे छूठी बचपन की यादें, बन भूली बिसरी तस्वीर,
याद बनकर रह गयी, मेरी बचपन की हर हशी ख़ुशी,
वो रात दिन खेलना पढ़ना, कर धमाचोकरी बीते दिन,
याद बहुत आती हैं मुझे, मेरे बचपन के बीते वो दिन,
बचपन की मीठी शराते, बस याद सिमट कर रह गयी,
मेरी वो निसचल ख़ुशी, जाने कहा मुझे छोड़ का चली गयी,
इक दिन क्या ऐसा आएगा, जब जी सकूँ मैं वो दिन,
मै क्या बच्चा बनकर, जी पाऊँगा बीते हुए वो दिन.
कुणाल कुमार
So true and beautiful lines written
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धन्याबाद
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