पतझर का मौसम, यहाँ वृक्ष दिखे बेजान,
बिन पत्ती फूल दिखे, लगे जहान सुनसान,
चारों तरफ़ हैं खामोशी, जैसे लूटा हुआ इनसान,
कहने को हैं बहुत कुछ, पर कह ना सके वो कुछ,
लूटा हुआ है वृक्ष, ना पत्तियाँ बची उसके साख,
मौसम की मार लगी, हरी भरी पेड़ बन गयी सूखी,
देखो इक छोटा सा फूल खिला, झेल रहा मौसम की मार,
फिर भी हिम्मत बड़ी है उसकी, सौंदर्य उसकी सबको दिखती,
उसे देख कुछ सीखो इंसान, अडग रहो विपरीत मौसम,
चाहे मौसम कितनी रुलाए, बने रहो तुम पतझर के फूल.
कुणाल कुमार
उम्दा है सर
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धन्याबाद
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Nice one!
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धन्यवाद
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