सुबह सुबह खुद से पूछा, बता तेरी क्या है मर्ज़ी,
देखा आईने में खुद को, दिखा सिर्फ़ तेरी तस्वीर,
साफ़ किया आईने को, सोचा हैं नज़रों की दोष,
फिर भी देखो दिखा मुझे, सिर्फ़ तेरी ही तस्वीर,
झटपट डॉक्टर से मिल आया, आँखों का चश्मा बनवाया,
चश्मा पहन आईना देखा फिरसे, सिर्फ़ दिखी तेरी ही तस्वीर,
कैसा ये धोखा हैं, या बस गयी हो तुम मुझमें,
ये आईने की दोष है, या मेरे दिल में बसी सोच,
अब सोच बदल सकता नहीं, जीना संग लिए तेरी तस्वीर,
बस जो गयी हो तुम मुझमें, ना दूर कर सके कोई मुझे तुमसे.
कुणाल कुमार
बेहद खूबसूरत कविता है🌷पर मात्राऐं …..
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धन्याबाद
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Welcome.
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