चेतना

मेरी चेतना मुझे लौटा दो, जीने का मतलब तुम सिखा  दो,
अंधेरी रात में तुम मेरा, सहारा बन  सच्चाई की राह दिखा दो,

डर लगता हैं मुझे, चलना अपने पैरो पे,
बिना तेरे सहारे, क्या चल पाएँगे पैर मेरे,

थोड़ी कठनाई हो रही, आगे बढ़ने में मुझे,
चेतना कहे बढ़ने को, दिल क्यों रुक सा गया,

ये लड़ाई हैं जारी,  चेतना और दिल के बीच,
कोई भी जीते ये  लड़ाई, हार मेरी होनी हैं पक्की.

कुणाल कुमार 

Leave a comment