क्या हुआ जो सोच मेरी, ना मिलती हो तुझसे,
एक शाम आएगी ऐसी, ढूँढती रहोगी तुम मुझे,
देखो मैंने ये ठान लिया, जी लूँ अब मैं भूल तुझे,
ना कोई रहे गिला सिकवा, ना रहे दूर होने का ग़म,
बहुत दिया समय तुम्हें, पर जोगी कोई तुम्हारी मजबूरी,
जो साथ आने की जगह, बना बैठी अब मुझसे ही दूरी,
इक चुप्पी भा गयी हैं मुझे, साथी बना ली मैंने उसे,
तकलीफ़ नहीं अब मुझे, चुप्पी से अब मैं चुप रह लूँ.
कुणाल कुमार