सुन सुनो ना जरा, क्यों रुठ बैठी हो तुम,
कैसे मना पाऊँ तुम्हें, इसी सोच में हूँ डुबा,
किस तकलीफ़ का माफ़ी माँगु, कितने दर्द दिए मैंने,
तेरे उन आश्रुओ का गुनहगार, पछता रहा सच्चे मन से,
हूँ तेरे हर दर्द का गुनहगार, सजा माँगु अपने प्रभु से,
तुझे मिले हर खुशी, तेरा हर ग़म रहे अब मेरा बनकर,
मैंने सोच ली अपनी सजा, होकर दूर तुमसे रहु सदा,
मुँह पे चुप्पी सजाकर, रोक लूँ अपने आश्रुओ की धारा,
जब कभी याद मेरी आए, बस इतना करना तुम मेरे लिए,
मेरी सारी भूल को भूल कर, रहना तुम सदा हशी खुशी.
कुणाल कुमार
Chhh
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haha
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