नहीं जीना वो लम्हा मुझे, जिस लम्हे मेन तेरी ज़िक्र ना हो,
जीवन इक सजा बन गयी, मुझे साँसे जब लेनी हो तेरे बिन,
पर भाग्य में लिखा हैं जो मेरे, रहना हैं अब हो अकेले,
जीने की सजा काटूँ मैं, साँसे लेने की हैं मेरी मजबूरी,
क्या वो लम्हा होगा कभी, जब मुझे मिलेगी अपनी खुशी,
अपना बना कर तुम बनोगी, साथी मेरे खुशी भरे जीवन की,
भूल लोगों की ताने, क्या खोज लेंगे हम अपनी ख़ुशी,
बने अब ज़िंदगी हमारी, ख़ुशियाँ भरी सुनहरे लम्हों की.
कुणाल कुमार