इक सहारा मिला था मुझे, अपने जीवन में बढ़ने को,
आज वो छूटा आ नज़र आ रहा, वो चली मुझे छोड़,
जो बनाया था कभी सपनो का महल, तेरे एहसास के तले,
आज वो टूटा सा बिखर कर रह गया, तेरे दूर चले जाने से,
जीवन के नदी पार करने के लिए, कोई सहारा नज़र में नहीं,
तेरे साथ की कस्ती का इंतज़ार में, काट रहा समय इस उम्मीद में,
चारों तरफ़ गहरा समंदर, फँसा हूँ किस जीवन भँवर में,
डरा सा मैं जी रहा, तेरे वापस आने के उम्मीद दिल लिए,
रेगिस्तान की तपती गर्मी सह लूँ, तेरे शीतलता के तले,
तेरे चले जाने से, सिर्फ़ मौत ही हमसफ़र नज़र आ रहा.